Tuesday, 22 October 2013

ज्यादा किंमत की वस्तु, मतलब १०० रु. से भी कम जिसके दाम...... फिर उस चीज पर क्यो लिखवांये हम अपनी गरीबी का नाम ?

 सबसे ज्यादा किंमत की वस्तु,
मतलब १०० रु. से भी कम जिसके 
दाम
फिर उस चीज पर क्यो लिखवांये 
हम अपनी गरीबी का नाम ?

( फेसबुक के ::::मुद्दा::: (the issue) से साभार रेखांकित ) 


ज सुबह एक छोटा बालक साईकिल पर ढेर सारी झाड़ू लेकर बेचने

निकला था। मैंने देखा कि वह 10 
रुपए की दो झाड़ू बेच रहा था और 


बच्चा समझकर लोग उससे उन दस रुपयों में भी मोलभाव करके, दस 

रुपए की तीन झाड़ू लेने परआमादा थे मैंने भी उससे दो झाड़ू खरीद ली,

लेकिन जाते- जाते उसे सलाह दे डाली कि वह 10 रुपए की दो झाड़ू 

कहने की बजाय 12 रुपए की दो झाड़ू कहकर बेचे.. और सिर्फ़ एक 

घंटे बाद जब मैं वापस वहाँ से गुज़रा तो उस बालक ने मुझे बुलाकर 

धन्यवाद दिया.. क्योंकि अब उसकी झाड़ू \"10 रुपए में दो \" बड़े आराम 

से बिक रही थी…।


मित्रो यह बात काल्पनिक नही है ।

बल्कि मैं तो आपसे भी आग्रह करता हूँ कि दीपावली का समय है, सभी 

लोग खरीदारियों में जुटे हैं, ऐसे समय सड़क किनारे धंधा करने वाले 

इन छोटे- छोटे लोगों से मोलभाव न करें…।
मिट्टी के दीपक, लक्ष्मी जी की फोटो , खील- बताशे, झाड़ू, रंगोली 
(सफ़ेद या रंगीन), रंगीन पन्नियाँ इत्यादि बेचने वालों से 
क्या मोलभाव करना ? ?  
जब हम  टाटा - बिरला -अंबानी औरविदेशी कपनियों के किसी भी उत्पाद में 
मोलभाव नहीं करते (कर ही नहीं सकते),  तो दीपावली के समय 
चार पैसे कमाने की उम्मीद में बैठे अपने ही इन रेहड़ी - खोमचे - ठेले 
वालों से " कठोर मोलभाव "  करना एक प्रकार का अन्याय ही तो है…।

आईये,  दिवाली के अवसर पर हम छोटे से छोटे व्यापारीयो के घर 


सुख - वैभव का एक छोटासा दिया जलाये……  
                 ………. चंद्रकांत वाजपेयी ( जेष्ठ नागरिक, औरंगाबाद )

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