Friday, 17 August 2012

क्या किया जाना उचित होगा ? 'विश्वस्तर पर धनाढ्यता के लिये अभिनन्दन' अथवा 'संभावित कुटिलचाल के लिए निर्वासन'

१६/०८/२०१२.       क्या किया जाना उचित होगा ?

'विश्वस्तर पर धनाढ्यता के लिये अभिनन्दन'
 अथवा 
  'संभावित कुटिलचाल के लिए निर्वासन' 

" हर बेटे की माँ उसकी सच्ची 'रक्षक' और सच्ची 'गुरु' होती है। जब कोई माँ अपनें बेटे को यह सीख दे कि मेरे प्रिय पुत्र "साहस-शौर्य और सुबुद्धि द्वारा राष्ट्रनिर्माण ही तेरा जीवन है, मै मेरा ऐसा बेटा चाहती हूँ जो केवल देश के लिए जिये, तब उस घर में निश्चित ही राष्ट्र निर्माता तैयार होते है."  जीजा माता के इसी व्यवहार के कारण शिवाजी एक शूरवीर इतिहास पुरुष बने. अर्थात पुत्र/पुत्री का भविष्य मां गढ़ती है |
उपरोक्त तथ्य की सत्यता के लिए आज भी विश्व के एक परिवार का जिवंत उदाहरण सबके सामने है। यह वह परिवार है जिसके कुछ पीढ़ीयों से वंशज सत्ता के शीर्ष में रहे है। इस परिवार की एक माता को विश्वस्तरीय धनाढ्यों में माना जा चुका है और इस परिवार का नाम भारत के इतिहास में भी अंकित है। मुझे पूर्ण विश्वास है कि आँख बंद करके और बिना कोई विशेष विचार किये अनेकानेक नागरिक इस परिवार का सही नाम बता देंगे |
मेरा मानना है कि उल्लेखित परिवार की कुछ बहु-बेटियाँ प्रारम्भ में उल्लेखित बातों को अच्छी तरह से समझ चुकी है और उसका पालन करके अपनें निजी उद्देश्य प्राप्ति में सफल रही है। संभवत: उन्होंने सानंद यह स्वीकार कर लिया है कि "वे उनके वंशजों की 'सच्ची रक्षक' और 'सच्ची गुरु' है अत: उन्हें केवल ऐसे पुत्र - पुत्री उनके देश के सामनें प्रस्तुत करना है जिनके हाथों से सदा सत्ता सूत्र संचालित होते रहें या सत्ता उनके हाथों में बनी रहे। साथ ही साथ उन्होंने निजी रूपसे उनका उद्देश्य यह भी मान लिया है कि उनके वंशज स्थायी अनंत संपत्ति के मालिक बनें | इस हेतु वे इसका पालन कुछ विशिष्ट पद्धतिसे
करती रही है।
इस परिवार की कुछ माताए शायद अपनें पुत्र-पुत्री को प्रतिदिन यह शिक्षा देती रही है कि " भविष्य में तू और केवल तू ही तेरे अपनें देश का कर्णधार है। सत्ता सूत्र सदैव अपनें हाथों में रख। तू साम-दाम-दंड-भेद का उपयोग करके संपत्ति का अनगिनत अर्जन कर, निजीतौर पर केवल यही तेरे जीवन का और हमारे परिवार का मूललक्ष है। इस स्थिति की प्राप्ति पर ही तू मेरा पुत्र या पुत्री कहलायेगा अन्यथा नहीं। बोल वचन दे की तू मेरा सच्चा और आज्ञाकारी पुत्र या पुत्री बनना चाहता है या नहीं ? बताया गया लक्ष प्राप्त करना चाहता है या नहीं ? यह याद रख कि " तेरे पूर्वज इसी क्रम में आगे बढे है, क्या तू अपनें पूर्वजों के कदमों पर कदम नहीं रखेगा ? आप ही बताइये कौन अपनी मां को ना करेगा ? उसे तो हाँ कहना ही होगा, उसे लक्ष प्राप्ति का वचन देना ही होगा।    " क्या प्रतिदिन अपनी मां को ऐसा वचन देते हुवे उस व्यक्ति के खून में उक्त भाव व्यवहार में लानें का संकल्प, न समा जाएगा ? "
लक्ष प्राप्त करनें की पक्की सोच बनानें के लिए शायद इस परिवार की कुछ माताएं उनके पुत्र - पुत्रियों को आगे यह भी समझाती होंगी कि " जिस देश में तू रहता है उस देश में तेरे चारों तरफदिखनें वाले, तेरे साथ खेलनें वाले, तेरे साथ पढ़नें वाले या तुझे मदत करनें वाले सभी लोग तेरे सेवक है, इनको कभी अपना भाई या सच्चा मित्र ना समझना और ना कभी ऐसा नाता जोड़ना। तेरे इस देश के लोग बहुत ज्यादा भावुक होनें के साथ - साथ लोभी है, धन या पद के लोभी। इन्हें कुछ थोडे से रुपयों में अथवा कोई छोटा लाभ देकर आराम से खरीदा या बेचा जा सकता है। इनको आपस में लड़वाना भी बहुत सरल है। इसलिए इन्हें कभी आपस में इकट्ठा नहीं होने देना है और इनमें विचारों की साम्यता भी नहीं होनें देना है। इन्हें हमेशा आपस में लड़वाओं और अपना उल्लू सीधा करते हुवे ऊपर बताया गया अपना लक्ष प्राप्त करो। हमेशा यही रणनीति उपयोग में लाना है और कामयाब होना है।
इस देश के लोग मीठे बोल से पिघल जाते है। अत: सबसे पहले मीठा बोलकर उनके साथ दिखावे के लिए दो कदम चलना। ऐसा स्वांग करनें में सफल होना कि तेरे व्यवहार से उन्हें सच्चा लगनें लगे कि केवल उनके कष्ट दूर करनें के लिए तू अपना घरबार-परिवार  छोड़कर उनके पास आया है। कच्चे मकान में एकाद रात रहना और उनके भोजन का आनंद लेनें का स्वांग करनें में सफल होना। तब निश्चित ही वे भावुक होकर तेरे आगे चार कदम चलेंगे, वे तेरी गुलामी करते रहेंगे और इतना ही नहीं वे इमानदारी के साथ तेरे लिए अपनी जान भी जोखिम में डालेंगे।
बस इतना याद रख " तू हर हालत में इस देश के मूल निवासियों को कड़वे बोल नहीं बोलेगा। ऐसा दिखा कि तू उनके लिए नि:स्वार्थ काम कर रहा है, उपकार कर रहा है। " फिर क्या वे सब तुझ पर कुर्बान हो जायेंगे। तेरे कहने पर आँख मूंदकर अपराध करेंगे, धन की लूटपाट अनैतिकता और बाहुबल के मार्ग से करेंगे। इतना ही नहीं वे जेल भी जायेंगे पर तुझे नोट - वोट और सत्ता सब कुछ स्वयं लाकर देंगे। 
यह कहावत सच है कि हर दिन इतवार नहीं होता और लक्ष्मी चंचल होती है ।  इसी तरह इंसान का मन भी स्थिर नहीं होता, वह कभी भी बदल सकता है ।   इसलिए अभी तक प्राप्त नोट - वोट और सत्ता की स्थिति स्थायी भाव नहीं है । या यूँ कहें की तेरे मूललक्ष प्राप्ति का यह अंतिम चरण नहीं है । अंतिम चरण पर पहुँचने के लिए प्राप्त संपत्ति को सुरक्षित रखना होगा और लगातार  पैसे से पैसा बनाना होगा ।  अतएव यथाआवश्यकता धन को विदेशों में गुप्त रूप से भेजना और उसी धन को फिर से तेरे निवास वाले देश की उन्नति के नाम पर कर्ज के रूप में वापस लाना होगा।  मतलब तुम्हारा स्वयंका और तुम्हारे सहयोगियों का अघोषित सारा पैसा ,जिसे "कालाधन " कहते है,  जो तुमनें सहयोगियोके साथ गुप्त रूप से विदेश में  रखा हो , उसी पैसे को ब्याज के आधार पर व्यापार के नाम से  फिर उसी देश में लाना, जिस देश में तुम रहते हो और स्थायी रूप से अनगिनत [अनंत] वैधानिक संपत्ति अर्जित करना ।  
अब आप ही सोचिये और हमें बताइये, 
हम सब देशवासी क्या करे ?
  विश्वस्तर पर धनाढ्यता की कीर्ती हेतू , 
क्या हम सब करे उनका हार्दिक भिनंदन ?
अथवा 
नई पीढी को कुटिलचाल की गलत सीख हेतू , 
क्यो ना करे उनका पदस्थान से निर्वासन ?
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  ' अब चाहिये जवाब आपका' और 'कर्तव्य देशावासियो का' ।        ________________________________

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