१६ सितम्बर २०१५.
यह केवल आदरणीय मोदी जी के मन की बात नहीं,
यह तो प्रत्येक नागरिक के मन की बात है,जिसकी अभिव्यक्ति करना
उसका नैतिक कर्तव्य भी है.
उसका नैतिक कर्तव्य भी है.
मित्रों, अपनें भारत के सविधान के अनुसार यह देश मेरा, आपका अर्थात प्रत्येक भारतीय नागरिक का है | अत: मेरे सहित प्रत्येक भारतीय नागरिक की नैतिक और संवैधानिक जिम्मेदारी है कि हर कई यह सोचे व मन में एकांत में शान्ति पूर्वक तथ्य पूरक विचार करे कि उसके अपनें देश भारत की समृद्धि व सुरक्षा कैसे हों ? समृद्ध भारत - विश्वगुरु भारत कैसे बनाया जाए ??
हर सच्चा भारतीय इस विषय में अपनें मन में निश्चित ही कभी ना कभी और कुछ ना कुछ रचनात्मक कामों का उत्तम विचार जरुर करता है, आपनें भी ऐसे विचार किये होंगे | यह विचार स्वागत योग्य होकर देश के भले में काम में आ सकते है | क्या आप अपनें मन के उन सभी रचनात्मक विचारों को मन में ही रहनें देंगे ? उन विचारों को अपनें मन में दबाकर रखेंगे तो बताइये क्या आप अपना कर्त्तव्य कर रहे है ?? नागरिकों द्वारा स्वतंत्रता पूर्वक अभिव्यक्त किये गए विचारों में अधिकतम लोगों के जो सामान विचार होते है, उन विचारों से देश का निर्माण करना ही लोकतंत्र होता है.|
श्रद्धेय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ऐसा ही मानते है ऐसी मेरी अपनी निजी धारणा है | मेरी निजी धारणानुसार शायद आदरणीय नरेन्द्र मोदी जी देशभर से नागरिकों के विचारों का संकलन करते है तथा उनमें से वह विचार जो अधिकातम लोगों द्वारा अभिव्यक्त किया गया हों उसे " रेडियो कार्यक्रम मन की बात " के माध्यम से प्रत्यक्ष / अप्रत्यक्ष जन जन से स्वीकृति हेतु प्रेषित करनें का प्रयास करते है और ऊपर बताए गए सच्चे लोकतंत्र को स्थापित करनें की दिशामें आगे बढ़ रहे है |
मित्रों, " यह विनम्र प्रार्थना है कि अवसर ना चुके, लोकतंत्र के प्रहरी बनें | अपनें अधिकार और कर्तव्य का निर्वाह करें आपके अपने मन की बात, मन से निकालकर आदरणीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के पास भिजवाकर उनके " रेडियो कार्यक्रम मन की बात " द्वारा सारे देश को भिजवाकर भारत के नवनिर्माण में अपनें मन के विचारों को जोड़ें |"
याद रहे कि यदि आपके विचार अधिकतम विचारों के साथ नहीं मिलनें से, कार्यक्रम में उल्लेखित नहीं भी हो, तो भी आनंद और स्वाभिमान होंना चाहिए कि मैंने अपना फर्ज अदा किया है |
भारत माता का सच्चा बेटा "स्व " अर्थात " मै या अहं " से ऊपर उठकर जीता है, वह ना निराश होता है और ना विरोध प्रकट कर बुझदिली के प्रतिक को उजागर करता है, बल्कि वह सदा ऐसी बातों से बचकर सकारात्मक और रचनात्मक सोच - व्यवहार को प्रस्तुत करता है |
इति शुभ |
......... चंद्रकांत वाजपेयी ( काका )
जेष्ठ नागरिक, औरंगाबाद. महाराष्ट्र.